मीडिया को लेकर लोगों का गुस्सा इसलिए भी ज़ाहिर हो रहा था क्योंकि
उन्हें ये लगता है कि मीडिया कश्मीर की असली तस्वीर नहीं दिखा रहा है.
श्रीनगर के तीन बड़े अस्पतालों से घायलों के आंकड़े हासिल करने के लिए हमें तीन दिन लग गए.
इन अस्पतालों में हम कैमरा लेकर नहीं गए. कैमरा देखते ही लोग भड़क जाते थे.
हमने किसी तरह इन तीन अस्पतालों से विरोध प्रदर्शनों में जख़्मी हुए लोगों के आंकड़े हासिल किए.
इन अस्पतालों में डॉक्टरों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि न उनके पास फ़ोन हैं और न ही कर्फ्यू पास. अपने घरवालों से बातचीत करने के लिए वे लोग परेशान थे.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मख्यमंत्री डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्ला से इंटरव्यू लेने के लिए आमिर पीरज़ादा और मैं क़रीब एक किलोमीटर पैदल चलकर जब उनके घर के गेट के बाहर पहुंचे तो उनके सिक्योरिटी गार्ड्स ने कहा कि आप हमसे बात न करें, क्योंकि यहां सब देख रहे हैं.
इतने में सीआरपीएफ़ के अधिकारी आए और हमें वहां से जाने के लिए कहा गया. एक तरफ सरकार कह रही थी कि वो घर में नज़रबंद नहीं हैं तो दूसरी तरफ उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा था.
ईद के दिन कश्मीर में बंदिशों को और भी सख्त किया गया था. सरकार को इस बात का अंदाज़ा था कि आम जनता ईद की नमाज़ के बाद विरोध प्रदर्शन कर सकती है. ईद के दिन हम दो टीमें बनाकर एक साथ श्रीनगर का दौरा करने निकले थे.
हैदरपोरा इलाके में लोगों को पुलिस सड़क के दूसरे तरफ मस्जिद में जाने से रोक रही थी. हम उन लोगों से मिले और उनका इंटरव्यू रिकॉर्ड किया किया. हमारे इंटरव्यू के बाद कुछ लोगों को मस्जिद में जाने दिया गया.
हैदरपोरा से निकलकर हम डाउनटाउन इलाके में पहुंचे, यहां सख्त कर्फ्यू था. किसी को चलने फिरने की इजाज़त नहीं थी. हमें दर्जनों जगहों पर रोका गया.
एक जगह कर्फ्यू पास माँगा गया. हमने फिर वही जवाब दिया कि सरकार तो कहती है कि कर्फ्यू तो है नहीं. यहां हम दो परिवारों से मिले. उन्होंने कहा कि हम तो क़ैद किए गए हैं, हमें बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है.
ईद के दिन डाउनटाउन की सड़कों पर सिर्फ सुरक्षाबल हमें नज़र आए. कहीं कोई आम नागरिक दिख भी जाता तो सुरक्षाबल उनसे पूछताछ करते.
अपनी कहानियों के लिए जानकारी इकट्ठा करने की मुश्किलों का सामना एक तरफ़ और फिर उस जानकारी को अपने दफ्तर तक पहुंचाने की जंग.
तीन दिनों तक हम श्रीनगर एयरपोर्ट के बाहर एक दुकान से घंटों इंतज़ार के बाद सूचनाएं भेजते रहे लेकिन ईद के दिन उनका भी इंटरनेट और फ़ोन कनेक्शन बंद कर दिया गया.
उस दुकानदार ने मुझसे कहा कि उनके पास पुलिस आई थी और कहा गया कि मीडिया के लोग यहां से वीडियो बाहर भेजते हैं.
प्रशासन से कर्फ्यू पास लेने की हर कोशिश भी नाकाम हो गई. श्रीनगर के डीसी ऑफिस के कई चक्कर काटने के बाद भी हम खाली हाथ लौट गए.
कश्मीर में कई बरस हो गए रिपोर्टिंग करते हुए- बतौर रिपोर्टर पिछले कुछ दिनों का अनुभव याद दिला गया कि सच और साहस के साथ पत्रकार का काम करना कश्मीर में अब उतना आसान नहीं रहा.
ये एहसास आपको डराता तो है लेकिन मुझे अंदाज़ा नहीं था कि इस चुप्पी से डर के साथ धीमी साँस में बेख़ौफ़ मिज़ाज भी मुस्कुराता है. रिपोर्टिंग जारी है.
श्रीनगर के तीन बड़े अस्पतालों से घायलों के आंकड़े हासिल करने के लिए हमें तीन दिन लग गए.
इन अस्पतालों में हम कैमरा लेकर नहीं गए. कैमरा देखते ही लोग भड़क जाते थे.
हमने किसी तरह इन तीन अस्पतालों से विरोध प्रदर्शनों में जख़्मी हुए लोगों के आंकड़े हासिल किए.
इन अस्पतालों में डॉक्टरों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि न उनके पास फ़ोन हैं और न ही कर्फ्यू पास. अपने घरवालों से बातचीत करने के लिए वे लोग परेशान थे.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मख्यमंत्री डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्ला से इंटरव्यू लेने के लिए आमिर पीरज़ादा और मैं क़रीब एक किलोमीटर पैदल चलकर जब उनके घर के गेट के बाहर पहुंचे तो उनके सिक्योरिटी गार्ड्स ने कहा कि आप हमसे बात न करें, क्योंकि यहां सब देख रहे हैं.
इतने में सीआरपीएफ़ के अधिकारी आए और हमें वहां से जाने के लिए कहा गया. एक तरफ सरकार कह रही थी कि वो घर में नज़रबंद नहीं हैं तो दूसरी तरफ उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा था.
ईद के दिन कश्मीर में बंदिशों को और भी सख्त किया गया था. सरकार को इस बात का अंदाज़ा था कि आम जनता ईद की नमाज़ के बाद विरोध प्रदर्शन कर सकती है. ईद के दिन हम दो टीमें बनाकर एक साथ श्रीनगर का दौरा करने निकले थे.
हैदरपोरा इलाके में लोगों को पुलिस सड़क के दूसरे तरफ मस्जिद में जाने से रोक रही थी. हम उन लोगों से मिले और उनका इंटरव्यू रिकॉर्ड किया किया. हमारे इंटरव्यू के बाद कुछ लोगों को मस्जिद में जाने दिया गया.
हैदरपोरा से निकलकर हम डाउनटाउन इलाके में पहुंचे, यहां सख्त कर्फ्यू था. किसी को चलने फिरने की इजाज़त नहीं थी. हमें दर्जनों जगहों पर रोका गया.
एक जगह कर्फ्यू पास माँगा गया. हमने फिर वही जवाब दिया कि सरकार तो कहती है कि कर्फ्यू तो है नहीं. यहां हम दो परिवारों से मिले. उन्होंने कहा कि हम तो क़ैद किए गए हैं, हमें बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है.
ईद के दिन डाउनटाउन की सड़कों पर सिर्फ सुरक्षाबल हमें नज़र आए. कहीं कोई आम नागरिक दिख भी जाता तो सुरक्षाबल उनसे पूछताछ करते.
अपनी कहानियों के लिए जानकारी इकट्ठा करने की मुश्किलों का सामना एक तरफ़ और फिर उस जानकारी को अपने दफ्तर तक पहुंचाने की जंग.
तीन दिनों तक हम श्रीनगर एयरपोर्ट के बाहर एक दुकान से घंटों इंतज़ार के बाद सूचनाएं भेजते रहे लेकिन ईद के दिन उनका भी इंटरनेट और फ़ोन कनेक्शन बंद कर दिया गया.
उस दुकानदार ने मुझसे कहा कि उनके पास पुलिस आई थी और कहा गया कि मीडिया के लोग यहां से वीडियो बाहर भेजते हैं.
प्रशासन से कर्फ्यू पास लेने की हर कोशिश भी नाकाम हो गई. श्रीनगर के डीसी ऑफिस के कई चक्कर काटने के बाद भी हम खाली हाथ लौट गए.
कश्मीर में कई बरस हो गए रिपोर्टिंग करते हुए- बतौर रिपोर्टर पिछले कुछ दिनों का अनुभव याद दिला गया कि सच और साहस के साथ पत्रकार का काम करना कश्मीर में अब उतना आसान नहीं रहा.
ये एहसास आपको डराता तो है लेकिन मुझे अंदाज़ा नहीं था कि इस चुप्पी से डर के साथ धीमी साँस में बेख़ौफ़ मिज़ाज भी मुस्कुराता है. रिपोर्टिंग जारी है.
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